भारतीय अवनद्ध वाद्य: निर्माण प्रक्रिया और विशेषताएँ

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अवनद्ध-वाद्य

भारतीय अवनद्ध वाद्य

 निर्माण प्रक्रिया और विशेषताएँ

           भारतीय संगीत परंपरा में अवनद्ध वाद्य या ताल वाद्य का विशेष स्थान है। ये वाद्य यंत्र, जिनमें तबला, मृदंग, पखावज, ढोलक, ढोल और डमरू शामिल हैं, भारतीय संगीत की लयबद्धता और ताल को सुंदरता से प्रकट करते हैं। इन वाद्यों का निर्माण विशिष्ट तकनीकों और सामग्रियों से किया जाता है, जिनसे इनकी ध्वनि, गुणवत्ता और शक्ति का स्तर तय होता है।

अवनद्ध वाद्य का अर्थ

अवनद्ध वाद्य वह वाद्य होते हैं जिनमें एक खोखले ढांचे को चमड़े (जानवरों की खाल) से ढका जाता है। इन्हें बजाने के लिए चमड़े पर हाथों या छड़ियों का प्रयोग किया जाता है। इस तरह से उत्पन्न कंपन ध्वनि का निर्माण करता है, और ये ध्वनियाँ लयबद्धता में उपयोग की जाती हैं।

अवनद्ध वाद्य के निर्माण की प्रक्रिया

  1. ढांचा तैयार करना:

    • अवनद्ध वाद्य में ढांचा (आवरण) मुख्य भूमिका निभाता है। इसे बनाने के लिए लकड़ी, मिट्टी, धातु या फाइबर का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, तबले का दायाँ हिस्सा लकड़ी का होता है, जबकि मृदंग और पखावज में मिट्टी का प्रयोग होता है।
    • ढांचे की मोटाई, आकार और उसकी नमी को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाता है, ताकि वह वाद्य की ध्वनि को संतुलित रूप में बना सके।
  2. चमड़े का चयन:

    • चमड़ा किसी विशेष जानवर (जैसे बकरी या भैंस) का प्रयोग करके तैयार किया जाता है, और इस चमड़े को आकार के अनुसार काटा जाता है। इसके बाद इसे वाद्य के ढांचे पर तानने के लिए रेशों, खपच्चियों या चमड़े की रस्सियों की मदद से बंधा जाता है।
    • जैसे, पखावज और तबले के लिए चमड़े का अलग-अलग आकार और मोटाई होती है, जिससे हर वाद्य अपनी विशेष ध्वनि उत्पन्न कर सके।
  3. काले धब्बे का उपयोग (सियाही):

    • तबले और पखावज जैसे वाद्यों में विशेष धब्बा लगाया जाता है जिसे "सियाही" कहा जाता है। इसे मिट्टी, काले पत्थर, और चावल के आटे से तैयार किया जाता है। यह धब्बा वाद्य की ध्वनि की गहराई और अनुगूंज को बढ़ाने का काम करता है।
    • सियाही का सही अनुपात और संतुलन वाद्य की ध्वनि गुणवत्ता पर विशेष प्रभाव डालता है, और इसे कई बार परीक्षण के बाद अंतिम रूप दिया जाता है।
  4. धुनाई और ध्वनि का परीक्षण:

    • एक बार ढांचे और चमड़े को जोड़ने के बाद, वाद्य की धुनाई की जाती है। इसे थोडी देर बजाकर देखा जाता है ताकि इसकी ध्वनि सही हो।
    • इस दौरान वादक विभिन्न सुरों में इसे बजाकर संतुलन का परीक्षण करते हैं। यदि ध्वनि संतुलन नहीं होता, तो इसे पुनः ढीला या कसा जाता है।
  5. अलंकरण:

    • कई अवनद्ध वाद्यों पर सजावटी कार्य भी किए जाते हैं, जैसे लकड़ी पर उकेरी गई डिजाइनों का प्रयोग, या चमड़े पर विशेष रंगों का लेप लगाना।

अवनद्ध वाद्य की महत्वता

अवनद्ध वाद्य भारतीय संगीत के ताल का आधार माने जाते हैं। ये वाद्य लय, गति और ताल में स्थायित्व प्रदान करते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत में तबले की थाप, मृदंग का गम्भीर स्वर या ढोलक की गूंज हर प्रकार की संगीत प्रस्तुति को अनोखा बनाती है। ताल वाद्य की मदद से कलाकार अपनी संगीत प्रस्तुति में उत्साह, उल्लास और भावों का संचार कर सकते हैं।

निष्कर्ष

अवनद्ध वाद्य भारतीय संगीत की लयबद्धता और संस्कृति का प्रतीक हैं। इनकी निर्माण प्रक्रिया, जिसमें ढांचा, चमड़े और विशेष तकनीकों का समावेश होता है, वाद्य के अनूठे ध्वनि गुणवत्ता को उभारता है। इन वाद्यों का अध्ययन न केवल शास्त्रीय संगीत की समझ को बढ़ाता है, बल्कि भारतीय परंपराओं को भी जीवंत बनाए रखता है।


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