आषाढ़ी एकादशी और वारकरी 'संगीत' परीक्षाएँ
आषाढ़ी एकादशी का महत्व
आषाढ़ी एकादशी, जिसे 'देवशयनी एकादशी' भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि है। यह दिन भगवान विष्णु के शयन में जाने का दिन माना जाता है, जो चार महीनों के बाद कार्तिक एकादशी पर जागते हैं। आषाढ़ी एकादशी को विशेष रूप से महाराष्ट्र में अत्यधिक धूमधाम से मनाया जाता है, जहां लाखों वारकरी भक्त पंढरपुर की यात्रा करते हैं।
वारकरी संप्रदाय और वारकरी 'संगीत'
वारकरी संप्रदाय महाराष्ट्र का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आंदोलन है, जिसमें भक्त 'विठोबा' या 'विट्ठल' की उपासना करते हैं। हर वर्ष आषाढ़ी एकादशी पर लाखों वारकरी भक्त पंढरपुर की पदयात्रा करते हैं, जिसे 'वारी' कहा जाता है। इस यात्रा में भक्ति 'संगीत' और भजनों का विशेष महत्व होता है।
वारकरी 'संगीत', जिसे वारकरी भजन या भक्ति 'संगीत' भी कहा जाता है, इस यात्रा का अभिन्न हिस्सा है। वारकरी 'संगीत' की धुनों में भक्ति और समर्पण की भावनाएँ झलकती हैं, जो श्रोताओं को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करती हैं।
वारकरी 'संगीत' परीक्षाएँ
भारतीय 'संगीत' कलापीठ वारकरी 'संगीत' को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए वारकरी 'संगीत' परीक्षाएँ आयोजित करती है। ये परीक्षाएँ वारकरी 'संगीत' के विभिन्न पहलुओं का परीक्षण करती हैं, जैसे कि:
- राग और ताल की समझ: परीक्षार्थी को विभिन्न रागों और तालों की पहचान और उनकी प्रस्तुति में कुशल होना आवश्यक है।
- भक्ति गीतों का गायन: भक्ति गीतों का सजीव और भावपूर्ण गायन परीक्षाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
- वाद्य यंत्रों का ज्ञान: विभिन्न वाद्य यंत्रों जैसे हारमोनियम, तबला, पखावज आदि का ज्ञान और उनका उपयोग परीक्षार्थी की 'संगीत' कुशलता को परखता है।
परीक्षाओं का महत्व
वारकरी 'संगीत' परीक्षाएँ उन लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं जो वारकरी 'संगीत' को गहराई से समझना और उसमें पारंगत होना चाहते हैं। ये परीक्षाएँ न केवल 'संगीत' के तकनीकी ज्ञान को परखती हैं, बल्कि भक्ति और समर्पण की भावना को भी महत्वपूर्ण मानती हैं। भारतीय 'संगीत' कलापीठ इन परीक्षाओं के माध्यम से वारकरी 'संगीत' की परंपरा को जीवित रखने और इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही है।