राग गायन का समय विभाजन

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समय-विभाजन

राग गायन/वादन का समय विभाजन


हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में रागो का गायन समय दिन और रात के २४ घटों के भाग करके बाटा गया है। पहला भाग - १० बजे दिन मे १० बजे रात तक और दूसरा भाग १० बजे रात मे १२ बजे दिन तक। इनमें पहले भाग को पूर्व भाग और दूसरे भाग में उत्तर भाग कहते हैं।


पूर्व राग-जो राग दिन के १० वजे मे रात के १० बजे तक के ( पूर्व भाग) समय में गाये बजाये जाते हैं, उन्हे "पूर्वराग' कहते हैं।


उत्तर राग-जो राग १० बजे रात में दिन के १२ बजे तक के (उत्तर भाग) समय में गाये बजाये जाते हैं, उन्हे "उत्तर राग" कहते हैं ।


               पूर्वराग और उत्तरराग यहा पर यह बता देना भी आनश्यक है कि इनको पूर्वांग वादी या उत्तरांग वादी राग क्यों कहते है ?

              सप्तक के ७ शुद्ध स्वरो में तार सप्तक का सा मिलाकर सा रे ग म, प ध नि सा इस प्रकार स्वरों के हिस्से करदिये जाय तो "सा रे ग म" यह सप्तक का पूर्वांग होगा और "प ध नि सा" यह उत्तराग कहा जायेगा।


पूर्वांग वादी राग-


जिन रागों का वादी स्वर सप्तक के पूर्वांग' अर्थात 'सा रे ग म" इन स्वरो मे से होता है, वे पूर्वांग वादी राग कहलाते हैं। ऐसे राग प्राय दिन के पूर्व भाग यानी १२ बजे दिन से १२ बजे रात्रि तक के समय में गाये जाते हैं।


उत्तरांग वादी राग -


           जिन रागों का वादी स्वर सप्तक के उत्तरांग अर्थात् प ध नि सा इन स्वरों में से होता है, वे उत्तरांग वादी राग कहे जाते हैं। ऐसे राग प्राय दिन के उत्तर भाग अर्थात् १२ बजे रात्रि मे १२ बजे दिन तक ही गाये बजाये जाते हैं। उपरोक्त वर्गीकरण में यह स्पष्ट हो जाता है कि राग के वादी स्वर को जान लेने पर उन राग के गाने का समय मालुम हो जाता है, जैसे-आसावरी का वादी स्वर धैवत है यानी सप्तक का उत्तराग स्वर है तो इसके गाने का समय भी प्रात काल है। यानी रात्रि के १२ बजे से दिन के बारह बजे तक का जो समय (उत्तर भाग) है, उसी के अन्तर्गत प्रात काल का समय आ जाता है। और यमन का वादी स्वर गन्धार है, जो कि सप्तक के पूर्वाग में से लिया हुआ स्वर है, अत यमन राग के गाने का समय रात्रि का प्रथम शहर है जोकि दिन के १२ बजे मे रात्रि के १२ बजे तक के (पूर्व भाग) क्षेत्र में आता है।


          इसलिये यमन पूर्वांग वादी राग कहा जायगा और आसावरी को उत्तरांग वादी राग कहेंगे । उपरोक्त विवेचन पर संगीत विद्यार्थियों को यह शंका होना स्वाभाविक है कि भैरवी में मध्यम वादी स्वर है जोकि सप्तक का पूर्वांग स्वर हुआ, फिर क्या कारण है कि भेरवी का गायन समय प्रात काल यताया गया है। उपरोक्त वर्णन के अनुसार तो भैरवी का गायन समय दिन का उत्तरभाग अर्थात् १२ बजे दिन मे १२ बजे रात्रि होना चाहिए या प्रातकाल का समय तो "उत्तरभाग" के अन्तर्गत आता है, फिर भैरवी का वादी स्वर है, जो कि सप्तक का उत्तरांग स्वर है फिर क्यों इसे पूर्व भाग (रात्रि के प्रथम प्रहर ) में गाते हैं ? उपरोक्त शंकाओं का समाधान यह है कि हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में यद्यपि सा रे ग म को सप्तक का पूर्वांग और प ध नि सां को उत्तरांग कहा गया है, किन्तु कुछ पूर्वांग वादी तथा उत्तरांग वादी स्वरों को उपरोक्त वर्गीकरण में लाने के लिये पूर्वांग का क्षेत्र 'सारेगमप और उत्तरांग का क्षेत्र म प ध नि सां इस प्रकार बढ़ाकर माना गया है। इस प्रकार सप्तक के २ भाग करने से सा, म, प यह तीनों स्वर सप्तक के उत्तरांग तथा पूर्वांग दोनों भागों में आ जाते हैं। और जब किसी राग में इन तीनों स्वरों में से कोई स्वर वादी होता है, तो वह राग पूर्वांग वादी भी हो सकता है और उत्तरांग वादी भी हो सकता है। ऊपर वर्णित भैरवी और कामोद राग इसी श्रेणी में आजाते हैं, अतः भैरवी में मध्यम वादी होते हुये भी यह उत्तरांग वादी राग माना जा सकता है और कामोद में पंचम वादी होते हुए भी उसे पूर्वांग वादी राग कह सकते हैं, क्योंकि यह दोनों ही राग सप्तक के 'बढ़ाये हुए क्षेत्र में आजाते है। इसी प्रकार अन्य कुछ राग भी इसी श्रेणी में आकर अपना क्षेत्र बनालेते है। अतः यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जब किसी राग में वादी स्वर सा, म, प, इनमें से कोई स्वर हो और यह बताना हो कि यह राग पूर्वांग वादी है या उत्तरांग वादी तो उस राग के गाने का समय देखकर तथा सप्तक के उत्तरांग और पूर्वांग भागों के दोनों प्रकारों को ध्यान में रखकर आसानी से बताया जा सकता है कि अमुक राग पूर्वांग वादी है या उत्तरांग वादी |


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