तबला वादकोंका जीवन परीचय
भाग २
उस्ताद वाजिद हुसेन खाँ
अत्यंत रसपूर्ण और घरानेदार तबलावादन के लिये जिनका नाम तबला जगत में बड़े आदर से लिया जाता है ऐसे तबला वादक यानी लखनऊ घराने के खलीफा उस्ताद वाजिद हुसेन खाँ वाजिद हुसेन खाँसाहब का जन्म सन १९०६ में लखनऊ शहर में हुआ था। उनके पिता उस्ताद बड़े मुझे खाँ साहब लखनऊ घराने के एक कामियाब तबलावादक और रचनाकार थे और नवाब वाजिद अली शाह के दरबार के कलारत्न थे उस्ताद बड़े मुझे खाँ लखनऊ घराने के मशहूर तबलावादक और नवाब सुजानुद्दौला के दरबारी वादक उ. मुहम्मद खांसाहब के जेष्ठ सुपुत्र थे। वाजिद हुसेन खाँसाहब के चाचा उस्ताद आबिद हुसेन खाँसाहब भी एक उच्च कोटि के कलाकार थे और उन से भी वाजिद हुसेन खाँसाहब को तबले की तालीम मिली थी। इस प्रकार उस्ताद वाजिद हुसेन खाँसाहब को लखनऊ घराने की विद्या वंशपरंपरा में ही मिली थी जिस पर कठोर रियाज करके उस्ताद वाजिद हुसेन खांसाहब ने लखनऊ घराने के तबलावादन को चार चाँद लगाये। लखनऊ शहर ठुमरी गायन और कथक नृत्य के लिये भी प्रसिद्ध हैं। संगीत की इन दोनों विधाओं का लखनऊ घराने के तबलावादन पर खूबसूरत असर हुआ है। उ वाजिद हुसेन खाँसाहब का तबला सुनते समय लखनऊ घराने की सारी विशेषताएं हमे सुनाई देती है। 3. वाजिद हुसेन खाँसाहब के वादन की और एक खास विशेषता है "रौं" वादन करते समय कायदे जैसी रचनाए वे एकगुन में बजाकर दुगुन में उसकी "रौ" करके वे उसे प्रस्तुत करते थे। उनकी जो ध्वनिमुद्रिकाएं उपलब्ध हैं, उन्हें सुनते समय उनकी तैयारी, कलात्मकता और खासकर "रौं" बनाने का उनका अंदाज सुनकर हम चकित हो जाते है। उ. वाजिद हुसेन खाँसाहब के चाचाजी उ. आबिद हुसेन खाँसाहब की पुत्री काझमी बेगम एक कलाप्रेमी महिला थी। उन्हें अरबी, फारसी तथा उर्दू भाषा की अच्छी मालूमात थी। अपने घराने की बंदिशे उन्होंने ने लिख के रखी थी। आबिद हुसेन खाँसाहब को कोई पुत्र नहीं था इसलिये उन्हो ने काइमी बेगम को तबलावादन में पारंगत किया था। इसी काइमी बेगम का निकाह उस्ताद वाजिद हुसेन खाँसाहब से हुआ। इस कलाकार दंपति को सन १९३० मे जो पुत्र हुआ उस का नाम रखा गया आफाक हुसेन । उस्ताद आफाक हुसेन खाँ ने अपने वादन से सारे तबलाजगत पर अधिराज्य किया औरलखनऊ घराने का नाम सारे विश्व में रोशन किया। उ. वाजिद हुसेन खाँसाहब के शिष्यों में उन के इस प्रज्ञावान सुपुत्र के अलावा पं. सलील बैनर्जी, पं. कनाई गोपालचंद्र और पं. सुदर्शन अधिकारी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
मियां आबिद हुसेन खाँ.
घरानेदार, तैयार और साथ साथ कलात्मक तबलावादक के लिये तबला जगत में जिन का नाम बड़े आदर से लिया जाता है, ऐसे महान तबलावादक थे उस्ताद आबिद हुसेन खाँसाहब मिंया आबिद हुसेनजी का जन्म सन १८६७ मे लखनऊ शहर मे हुआ। मियाजी को लखनऊ घराने का तबला वंशपरंपरा में ही मिला था । उन के पिता उस्ताद मुहम्मद खाँ उस समय के एक जोनेमाने तबलावादक थे और नबाब सुजातुद्दौला के दरबारी कलाकार थे। उस्ताद मुहंमद खाँ के पिता अर्थात मिया आबिद हुसेनजी के दादाजी उस्ताद मम्मू खाँ भी एक प्रसिद्ध तबलावादक थे और वे लखनऊ घरानेके संस्थापक उस्ताद बक्शू खाँसाहेब के जेष्ठ पुत्र थे। लखनऊ घराने की ऐसी थोर परम्परा में जन्मे मिया आबिद हुसेनजी को लखनऊ घराने का तबला इस प्रकार विरासत में ही मिला था। मियाँ आबिद हुसेनजी की प्राथमिक शिक्षा उनके पिता उस्ताद मुहम्मद खाँ केपास शुरु हुई लेकीन पिता के पास ज्यादा दिन सीखने का सौभाग्य आबिद हुसेनजी को नही प्राप्त हुआ और उनकी छोटी उम्र मे ही उस्ताद मुहम्मद खाँ, अल्ला को प्यारे हो गये। पिता के देहांत के बाद आबिद हुसेनजी ने अपने बड़े भाई और नवाब वाजिद अली शाह के दरबारी कला रत्न उस्ताद बड़े मुन्ने खांसाहब से तबले की तालीम लेन शुरू किया । अत्यंत कठोर परिश्रम और रियाज तथा अपनी अलौकिक प्रतिभा के कारण कुछ ही सालों में मिया आबिद हुसेनजी का नाम संगीत विश्व में चारो ओर फैल गया। "लखनऊ घराने का असली तबला सुनना है तो केवल मिया आबिद हुसेन खाँसाहब का" ऐसे उस समय के सभी बुजुर्ग कहते थे। सभी अच्छे कलाकार अच्छे गुरु भी हो ऐसा संभव नहीं, लेकिन मिया आबिद हुसेन एक उच्च कोटि के कलाकार के साथ साथ एक महान गुरु भी थे। अपने पुरखो से प्राप्त हुई लखनऊ घराने की इस विद्या को बडी उदारता से उन्होंने अपने शिष्यों को दिया। लखनऊ के मॉरीस कॉलेज ऑफ म्युजिक जो आज पं. भातखंडे विश्वविद्यालय नाम से प्रसिद्ध है वहाँ पर मियाँ आबिद हुसेनजी ने कई साल तक अध्यापन का कार्य किया। अपनी उदारता और शिक्षा देने की कुशलता के कारण उन्होंने अनेक शिष्य तैयार किये, जिन में उनके भतीजे उस्ताद वाजिद हुसेन खाँ, इंदौर के उस्ताद जहांगीर खाँ बनारस के पं. बीरु मिश्र आदिने तबलावादन में बहुत नाम कमाया। जिन के नाम के बिना लखनऊ घराने का उल्लेख अधूरा है, ऐसे महान तबलावादक मिया आबिद हुसेन खाँसाहब का देहांत सन १९३६ मे हुआ ।